June 2017 20
इक न इक दिन हमें जीने का हुनर आएगा…
Posted By : kanoos
Comments Off on इक न इक दिन हमें जीने का हुनर आएगा…

ग़ज़ल – प्रेमचंद सहजवाला इक न इक दिन हमें जीने का हुनर आएगा कामयाबी का कहीं पर तो शिखर आएगा इस समुन्दर में कभी दिल का नगर आएगा मेरी मुट्ठी में भी उल्फत का गुहर

June 2017 20
ज़रा सी बात पे…
Posted By : kanoos
Comments Off on ज़रा सी बात पे…

गज़ल – प्रेमचंद सहजवाला ज़रा सी बात पे हो जाते हैं खफा कुछ लोग कभी जो होते थे अपने भी हमनवा कुछ लोग शजर की छांव में बैठे तो गुफ्तगू कर ली अगरचे धूप में

June 2017 20
ज़िन्दगी में कभी ऐसा भी सफर आता है…
Posted By : kanoos
Comments Off on ज़िन्दगी में कभी ऐसा भी सफर आता है…

गज़ल – प्रेमचंद सहजवाला ज़िन्दगी में कभी ऐसा भी सफर आता है अब्र इक दिल में उदासी का उतर आता है शहृ में खुद को तलाशें तो तलाशें कैसे हर तरफ भीड़ का सैलाब नज़र

June 2017 20
मगरूर ये चराग दीवाने हुए हैं सब…
Posted By : kanoos
Comments Off on मगरूर ये चराग दीवाने हुए हैं सब…

गज़ल – प्रेमचंद सहजवाला मगरूर ये चराग दीवाने हुए हैं सब गरचे ये आँधियों के निशाने हुए हैं सब इक कारवां है बच्चों का पीछे पतंग के उड़ती हुई खुशी के दीवाने हुए हैं सब

June 2017 20
शहृ में चलते हुए सब को यही लगता है क्या…
Posted By : kanoos
Comments Off on शहृ में चलते हुए सब को यही लगता है क्या…

गज़ल – प्रेमचंद सहजवाला शहृ में चलते हुए सब को यही लगता है क्या कू ब कू दुश्मन कोई फिर घात में बैठा है क्या हाथ फैला कर यहाँ पर हर कोई करता सवाल देखना

June 2017 20
किसानों को ज़मींदारों के जब ऐलां बता देंगे…
Posted By : kanoos
Comments Off on किसानों को ज़मींदारों के जब ऐलां बता देंगे…

गज़ल – प्रेमचंद सहजवाला किसानों को ज़मींदारों के जब ऐलां बता देंगे, वो अपनी जान दे कर आप के कर्ज़े चुका देंगे. परिंदे सब तुम्हारे क़ैदखाने के कफ़स में हैं, मगर इक दिन ये तूफाँ

June 2017 20
जगमगाते शहृ का हर इक मकाँ ऐवाँ लगा …
Posted By : kanoos

गज़ल – प्रेमचंद सहजवाला जगमगाते शहृ का हर इक मकाँ ऐवाँ लगा गरचे दिल से हर बशर बे-इन्तहा वीराँ लगा झूठ के रस्ते रवाँ था आज सारा काफिला सच के रस्ते जा रहा इक आदमी

June 2017 20
सियासत
Posted By : kanoos
Comments Off on सियासत

गज़ल – प्रेमचंद सहजवाला न हिन्दू की न मुस्लिम की किसी ग़लती से होता है यहाँ दंगा सियासतदान की मर्ज़ी से होता है ज़मीं सरमाएदारों की है या है हम किसानों की हमारे मुल्क में

June 2017 20
सदा दी थी बहारों…
Posted By : kanoos
Comments Off on सदा दी थी बहारों…

गज़ल – प्रेमचंद सहजवाला सदा दी थी बहारों को मगर आई खिज़ां क्यों है दीवानों के लिये ये इश्क आखिर इम्तेहां क्यों है फ़रोज़ाँ रौशनी बेइन्तहा थी जश्न जब आया अंधेरों की तरफ ये काफिला

June 2017 20
दीवाने…
Posted By : kanoos
Comments Off on दीवाने…

गज़ल – प्रेमचंद सहजवाला दीवाने तेरे हुस्न के मारों में खड़े हैं तपते हुए पैरों से शरारों में खड़े हैं तारों से फरोज़ां किये दुल्हन तेरी चूनर हम डोली उठाए हैं कहारों में खड़े हैं