गज़ल – प्रेमचंद सहजवाला छाए हैं आसमान में अब अब्र बेहिसाब मौसम चला है करने को क्या शाम लाजवाब दिन भर में कितनी रोशनी धरती पे खर्च की अब दे रहा उफक को है सूरज
गज़ल – प्रेमचंद सहजवाला ये खाली खाली दिन तेरे पैगाम के बिना जैसे कि हो गिलास कोई जाम के बिना राधा सकी न नाच कभी शाम के बिना होती रुबाई क्या भला खैयाम के बिना
गज़ल – प्रेमचंद सहजवाला मगरूर ये चराग दीवाने हुए हैं सब गरचे ये आँधियों के निशाने हुए हैं सब इक कारवां है बच्चों का पीछे पतंग के उड़ती हुई खुशी के दीवाने हुए हैं सब
गज़ल – प्रेमचंद सहजवाला चलो माज़ी के अंधियारों में थोड़ी रौशनी कर लें वहां यादों के दीपों से फरोजां जिंदगी कर लें मेरे महबूब तेरी दीद कब होगी ये क्या मालूम तुम्हारी इंतज़ारी में ज़रा
गज़ल – प्रेमचंद सहजवाला रिश्तों को तोड़ कर जो अचानक चले गए दिल में उन्हीं को पा के मैं हैरां हुआ बहुत मेहनत के बाद बैठे थे जब इम्तिहान में मुश्किल सा हर सवाल भी
गज़ल – प्रेमचंद सहजवाला शहृ से गर गांव तक कोई सड़क तामीर हो गांव में और शहृ में फिर फासला शायद न हो जिस तरह लिख कर गए जांबाज़ तारीखे-वतन, उस तरह का फिर किसी
गज़ल – प्रेमचंद सहजवाला सब मनाज़िर हैं फज़ा के यूं निखर आए यहाँ चाँद आ कर सिर्फ अपनी ज़ुल्फ़ बिखराए यहाँ हर हवा का रुख बताया है यहाँ किस फर्द ने और रफ्तारे-हवा भी कौन
गज़ल – प्रेमचंद सहजवाला अब कहाँ से आएँगे वो लोग जो नायाब थे रात की तारीकियों में टिमटिमाते ख्वाब थे गरचे मौजें आसमां को छू रही थी एक साथ पर समुन्दर में सभी नदियों के
गज़ल – प्रेमचंद सहजवाला ज़िन्दगी में कभी ऐसा भी सफर आता है अब्र इक दिल में उदासी का उतर आता है शहृ में खुद को तलाशें तो तलाशें कैसे हर तरफ भीड़ का सैलाब नज़र
गज़ल – प्रेमचंद सहजवाला जब कभी मौजें समुन्दर की करेंगी इन्किलाब मांग लेंगी सब तेरे आमाल का तुझ से हिसाब खेलने वाले हुए हैं आज दुनिया के नवाब पढ़ने-लिखने वाले दिखते हैं ज़माने को खराब