प्रेमचंद सहजवाला  जी का जन्म १९४५ में सिंध में सुजावल नाम की जगह पर हुआ. उनके पिता एक सरकारी इंजिनियर थे.  परिवार में उनके अलावा २ बड़े और एक छोटे भाई और १ बड़ी और २ छोटी बहनें थीं.

 उस समय के ज़्यादातर परिवारों की तरह ही सभी भाई बहन छोटे से घर में बड़ी सी खुशियों के साथ रहते थे. वक्त ने बहुत कुछ दिखाया और सिखाया प्रेमचंद जी को.

साहित्य में रुचि काफी छोटी उम्र से रही. और लिखने की आदत कब पड़ी, शायद उन्हें पता ही नहीं चला. शुरुवात कहानियों से हुई.

७० के दशक से उनकी कहानियाँ पत्रिकाओं में आने लगीं. सारिका, कहानी, धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान जैसी चर्चित पत्रिकाओं में काफी कथाएँ प्रकाशित हुईं.  १९७८ से १९८३ के बीच उनके ३ कहानी संग्रह भी छपे. सदमा, टुकड़े टुकड़े आसमान और कैसे कैसे मंज़र. कैसे कैसे मंज़र को शिक्षा मंत्रालय द्वारा पुरस्कृत भी किया गया.

शुरुवात की उनकी कहानियों और कविताओं में उन्होंने अक्सर परिवार की परिस्थितियों व उन परिस्थितियों में परिवार के अलग अलग नज़रियों का वर्णन किया है.

कविता, गीत, ग़ज़ल, कहानी, उपन्यास, इतिहास व राजनीती पर टिपण्णी इन सभी शैलियों में लिखा उन्होंने. इनमें से कहानी और ग़ज़ल उनके सबसे करीब थे. या ये कहें कि सब से ज़्यादा उन्होंने कहानी और ग़ज़लें लिखीं. हिंदी के अलावा अंग्रेजी, सिन्धी और उर्दू में भी काफी कुछ लिखा उन्होंने.

१९८३ में छपे कहानी संग्रह के बाद  काफ़ी लम्बा अंतराल रहा उनकी अगली पुस्तक प्रकाशित होने में. इस बीच उन्होंने राजनीती पर टिप्पणी करते हुए ऑनलाइन ब्लॉग पर काफी कुछ लिखा.

और फिर ५-६ साल की मेहनत के बाद २००४-०५ में आई एक २ वॉल्यूम की India Through Questions and Answers. यह उनकी पहली अंग्रेजी किताब थी. पुस्तक में प्राचीन इतिहास से लेकर आधुनिक राजननीति, खेल और फिल्म जगत से जुड़े ७५०० सवाल-जवाब, और कुछ लेख छपे थे. और हर विषय पर समझो महारथ हासिल कर ली थी उन्होंने.  छपे हुए सवालों में से कोई भी सवाल उनसे पूछने पर जवाब के साथ उस के आस पास की कुछ और चीज़ें भी पता लग जाती थीं.

देखा जाये तो ऐसे बहुत कम क्षेत्र, विषय या शैलियाँ होंगी जिन के बारे में उन्होंने काफी कुछ पढ़ा न हो. इतिहास की अगर बात करें, तो बहुत सी घटनाओं के न सिर्फ सन पर तारीख तक याद होती थी उन्हें. धर्म की बात की जाये, तो हिन्दू धर्म के सब पुराण, गुरु ग्रन्थ साहिब, कुरान, बाइबिल सब ना सिर्फ पढ़ी थी उन्होंने, पर हर एक धर्म पर वे चर्चा कर सकते थे, आज के हर धर्म के कट्टर को यह सीख दे सकते थे की कौनसा धर्म आखिर असल में कहता क्या है. खेल में भी काफी रुचि रखते. और राजनीति की खबरें मानो उनकी दिल की धड़कन की तरह थी.

अंग्रेजी में ही उनका एक और संग्रह प्रकाशित हुआ Mumbai Kiski & Other articles, जिसमे कश्मीर सहित बहुत से समकालीन विषयों पर लिखे ब्लोग्स को संगृहीत किया गया था.

और फिर इतिहास के कुछ पन्ने पलटतेहुए उन्होंने भगत सिंह और उनके साथियों की शहादत पर एक शोध लिखा – भगत सिंह: इतिहास के कुछ और पन्ने.

अपने जीवन के सारे अनुभवों को संकलित किया उन्होंने अपने आखरी २ प्रकाशित संग्रहों में – सितम फेसबुक के तथा नौक्रीनामा बुद्धू का.

उनके मित्रों की सूची में ५ साल से ले कर ८५ साल तक के लोग थे. न सिर्फ प्रसिद्ध व कुशल लेखकों की इज्ज़त करते थे, बल्कि उभरते सितारों की सराहना करके उन्हें ऊपर उठने के रास्ते भी दिखाते थे. जहां उनसे बड़े व उनकी उम्र के मित्र उन्हें प्रेम जी कह कर पुकारते थे, युवा मित्रों में वे ELPU – Ever Loving Prem Uncle  के नाम से जाने जाते थे

उन्होंने एक कविता संग्रह तथा एक कहानी संग्रह का सम्पादन भी किया. दोनों को संकलित करने में उन्होंने बहुत श्रम और समय लगाया. अपने समय के वरिष्ठ कवियों और कहानीकारों से लेकर नए लेखकों और कवियों की कृतियों को संकलित किया उन्होंने. दोनों ही संग्रह उनके दिल के बहुत करीब थे.

लिखनी ही होगी एक कविता  – उनका संकलित कविता संग्रह २०१४ में प्रकाशित हुआ. दुर्भाग्य से अपना कहानी संग्रह – नई सदी: नए कथा तेवर, वे प्रकाशित होती नहीं देख पाए. बहुत जल्द हम इस कार्य को पूर्ण कर पाएंगे

प्रेम जी की बड़ी बहन अंजना जी उनके  सब से ज्यादा करीब थीं, अंजना जी ने अपने परिवार के लिए बहुत कुछ किया, बहुत कठिनाइयाँ सहीं. प्रेम जी क लिए वे  उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण अंश थीं. अपना एक कहानी संग्रह टुकड़े टुकड़े आसमान उन्होंने उन्हीं को समर्पित किया था.

२००९ में अपनी बहन को खोने के कुछ साल बाद उन्होंने एक मंच की स्थापना करी – अंजना एक विचार मंच. उस मंच के माध्यम से वे हिंदी की प्रोन्नति करना चाहते थे. साहित्य से जुड़े अलग अलग समकालीन विषयों पर साल में ४ या ५ चर्चाओं का आयोजन करते. उसी मंच पर वे उभरते लेखकों और कवियों को आगे आने के मौके देते थे, हर साल एक प्रतिभाशाली लेखक या लेखिका को पुरस्कृत करते.

जीवन की शुरुवात में जो परिस्थितियां स्वयं प्रेम जी ने देखीं, जिन कठिनाइयों का सामना करते हुए उन्होंने अपनी पढाई पूरी करी, वे किसी और को उन कठिनाइयों में नहीं देखना चाहते थे. इसलिए उन्होंने स्वयं अपने सीमित साधनों से एक छोटी सी कोशिश शुरू करी. छोटे ज़रूरतमंद बच्चोँ को साल में एक छोटी सी धनराशी देकर उनकी पढाई में  थोड़ी सी मदद करने की कोशिश. उस कोशिश के लिए उन्होंने कृष्णा फाउंडेशन की स्थापना की.

क्योंकि मैं सोचता हु इसलिए मैं हूँ.

डेसकार्टेस के इसी विचार के आधार पर प्रेमचंद सहजवाला सोचते चले गए, और लिखते चले गए, और जीते चले गए.

कहने को तो अब वो हमारे बीच नहीँ हैं, लेकिन बहुत कुछ है हमारे पास जिससे उन्हें हम अपने बीच जीवित रख सकते हैं. उनका लेखन, उनकी सोच  और उनके बहुत से अधूरे  काम।  .

यह वेबसाइट एक प्रयास  है उनकी लिखी कहानियां, कवितायेँ, ग़ज़लें, लेख व उनकी विचारधारा लोगों तक पहुचाने की। कोशिश रहेगी कि इसी माध्यम से उनके संस्थापित ‘अंजना: एक विचार मंच’ को भी नयी ऊचाइयों तक ले जाया जा सके, तथा उनके अधूरे समाजिक कार्यों को भी संपन्न किया जा सके।