20
- June
2017
Posted By : kanoos
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ज़िन्दगी में कभी ऐसा भी सफर आता है…

गज़ल – प्रेमचंद सहजवाला

ज़िन्दगी में कभी ऐसा भी सफर आता है
अब्र इक दिल में उदासी का उतर आता है
शहृ में खुद को तलाशें तो तलाशें कैसे
हर तरफ भीड़ का सैलाब नज़र आता है
अजनबीयत सी नज़र आती है रुख पर उस के
रोज़ जब शाम को वो लौट के घर आता है
पहले दीवानगी के शहृ से तारुफ रखो
बाद उस के ही मुहब्बत का नगर आता है
दो घड़ी बर्फ के ढेरों पे ज़रा सा चल दो
संगमरमर सा बदन कैसे सिहर आता है
जिस के साए में खड़े हो के मेरी याद आए
क्या तेरी राह में ऐसा भी शजर आता है
(फाइलातुन फइलातुन फइलातुन फेलुन)

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