20
- June
2017
Posted By : kanoos
जगमगाते शहृ का हर इक मकाँ ऐवाँ लगा …

गज़ल – प्रेमचंद सहजवाला

जगमगाते शहृ का हर इक मकाँ ऐवाँ लगा
गरचे दिल से हर बशर बे-इन्तहा वीराँ लगा
झूठ के रस्ते रवाँ था आज सारा काफिला
सच के रस्ते जा रहा इक आदमी नादाँ लगा
सच खड़ा था कटघरे में और मुन्सिफ झूठ था
डगमगाता किस कदर इन्साफ का मीज़ां लगा
जिन सवालों का पता था इम्तिहाँ से पेशतर
इम्तिहाँ में बस उन्हीं का हल मुझे आसाँ लगा
इक मुलम्मा ओढ़ कर मिलते यहाँ अहबाब हैं,
मुस्कराना भी किसी का जाने क्यों एहसाँ लगा

इक बड़ा बाज़ार दुनिया बन गई है दोस्तो
दह्र के बाज़ार में इन्सां बहुत अर्ज़ां लगा

ज़िन्दगी के क़र्ज़ से था डर रहा जो बेपनाह
मौत से बेखौफ मुझ को अब वही दहकाँ लगा

दोस्त के सीने में खंजर घोंपना आसान था
दर्द सा इक बेवजह दिल में फ़कत पिन्हाँ लगा

Category:

Comments

Comments are closed.