20
- June
2017
Posted By : kanoos
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दीवाने…

गज़ल – प्रेमचंद सहजवाला

दीवाने तेरे हुस्न के मारों में खड़े हैं
तपते हुए पैरों से शरारों में खड़े हैं
तारों से फरोज़ां किये दुल्हन तेरी चूनर
हम डोली उठाए हैं कहारों में खड़े हैं
तालीम पे इस अह्द में इक आप का हक है
इस मुल्क में हम कब से गंवारों में खड़े हैं
मंदिर हो कि मस्जिद हो वहाँ जंग छिड़ी है
हिंदू ओ’ मुसलमान कतारों में खड़े हैं
सूरज लिये फिरते हैं हथेली पे जो पैहम
हम आज उन्हीं रंगे सियारों में खड़े हैं
चल चल के कदम रुकते हैं अचरज में अचानक
ये सूखे शजर कैसे बहारों में खड़े हैं
सहरा में नहीं होती किसे अब्र की चाहत
यह सोच के प्यासों की कतारों में खड़े हैं
मज़हब के सबब आप की हम से है अदावत
हम जी के भी अल्लाह के प्यारों में खड़े हैं
जिन लोगों ने राहों से बनाए थे मरासिम
मंज़िल पे वही लोग सितारों में खड़े हैं
महसूस जिन्होंने भी किया दर्द हमारा
वो आज तेरे मेरे सहारों में खड़े हैं
(शरारों = अंगारों, तालीम = शिक्षा, अहद = युग, फ़ारोज़ां = जगमगाती, पैहम = हमेशा, शजर = पेड़, सहरा = रेगिस्तान,अब्र = बादल, अदावत = दुश्मनी, मरासिम = संबंध,

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