20
- June
2017
Posted By : kanoos
Comments Off on हर इक शय किस कदर लगती नई थी
हर इक शय किस कदर लगती नई थी

गज़ल – प्रेमचंद सहजवाला

हर इक शय किस कदर लगती नई थी
हवाले जब तेरे यह ज़िंदगी थी

ज़रा सी गुफ्तगू तुम से हुई जब
मेरी राहों में मंज़िल आ बिछी थी

अँधेरा पार कर आए कदम जब
बहुत मसरूर मुझ से रौशनी थी

मैं सहरा में चला आया था जब जब
सुराबों में मची क्या खलबली थी

मैं सज धज कर वहाँ से हट गया था
मगर शीशे में परछाईं खड़ी थी

Category: