20
- June
2017
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शहृ से गर गांव तक …
गज़ल – प्रेमचंद सहजवाला
शहृ से गर गांव तक कोई सड़क तामीर हो
गांव में और शहृ में फिर फासला शायद न हो
जिस तरह लिख कर गए जांबाज़ तारीखे-वतन,
उस तरह का फिर किसी में हौसला शायद न हो