20
- June
2017
Posted By : kanoos
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जब कभी मौजें समुन्दर की करेंगी इन्किलाब…

गज़ल – प्रेमचंद सहजवाला

जब कभी मौजें समुन्दर की करेंगी इन्किलाब
मांग लेंगी सब तेरे आमाल का तुझ से हिसाब

खेलने वाले हुए हैं आज दुनिया के नवाब
पढ़ने-लिखने वाले दिखते हैं ज़माने को खराब

एक लम्हा ज्यों सदी और इक सदी जैसे कि पल
कौन समझेगा यहाँ अब वस्लो- फुरकत के हिसाब

जब कभी माज़ी ने पूछे दिल से कुछ मुश्किल सवाल
तब ज़माने-हाल ने ही दे दिए आसां जवाब

बैठ कर फुर्कत के सिरहाने सुलगती रात में
पढ़ रहे हैं वस्ल के ख्वाबों की इक सुन्दर किताब

(फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन)

Thursday, May 6, 2010

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