20
- June
2017
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है खिजां गुलशन में फिर भी लग रहा आई बहार…
गज़ल प्रेमचंद सहजवाला
हो गए हैं आप की बातों के सब मुफलिस शिकार
है खिजां गुलशन में फिर भी लग रहा आई बहार
रौशनी दे कर मसीहा ने चुनी हंस कर सलीब
रौशनी फिर रौंदने आए अँधेरे बेशुमार
रहबरों के हाथ दे दी ज़िन्दगी की सुब्हो-शाम
ज़िन्दगी पर फिर रहा कोई न अपना अख्तियार
मिल नहीं पाते शहर की तेज सी रफ़्तार में
याद आते हैं वही क्यों दोस्त दिल को बार बार
जिन के साए में कभी रूदादे-उल्फत थी लिखी
हो गए हैं आज वो सारे शजर क्यों शर्मसार
(फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन)
Thursday, May 6, 2010