20
- June
2017
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कितनी करीबियों से गुज़र कर…
गज़ल – प्रेमचंद सहजवाला
कितनी करीबियों से गुज़र कर जुदा हुए
तकदीर से हम ऐसे में कितने खफा हुए
उन चीड़ के दरख्तों के साये में बैठ कर
यादों से अश्कबार भी हम बारहा हुए
थे गमज़दा धुंधलकों में तनहाइयों के पर
खुश भी तेरे ख़याल से बे-इन्तहा हुए
ऐ दिल वफ़ा के रस्मो-रिवाजों का गम न कर
रस्मो रिवाज उनकी जफा के रवा हुए
फस्ले बहार बन के जो गुलशन में आए तुम
मंज़र तुम्हारे हुस्न पे कितने फ़िदा हुए
जिन के लिये ये जान भी हाज़िर थी दम-ब-दम
वो हम-नशीन आज हैं सब नारसा हुए
कूचे में उनके पहुंचेंगे कब जाने ये कदम
तब तक तो रास्ते ही मेरे हमनवा हुए