20
- June
2017
Posted By : kanoos
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इक न इक दिन हमें जीने का हुनर आएगा…

ग़ज़ल – प्रेमचंद सहजवाला

इक न इक दिन हमें जीने का हुनर आएगा
कामयाबी का कहीं पर तो शिखर आएगा

इस समुन्दर में कभी दिल का नगर आएगा
मेरी मुट्ठी में भी उल्फत का गुहर आएगा

अपने पंखों को ज़रा तोल के देखो ताइर
आस्माँ गुफ्तगू करने को उतर आएगा

चमचमा देता है आईने को किस दर्जा तू
जैसे इस तर्ह तेरा चेहरा निखर आएगा

आज इस शहृ में पहुंचे हैं तो रुक जाते हैं
होंगे रुख्सत तो नया एक सफ़र आएगा

चिलचिलाहट भरी इस धूप में चलते चलते
जाने कब छांव घनी देता शजर आएगा

अपना सर सजदे में उस दर पे मुसलसल रख दे
इक न इक तो इबादत में असर आएगा

(गुहर = मोती, ताइर = पंछी, रुख्सत = विदा, शजर = वृक्ष मुसलसल = लगातार)

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